“ईरान संकट पर वामदलों का संयुक्त बयान: युद्ध नहीं, शांति चाहिए”

छत्तीसगढ़ जनवार्ता

कोरबा। ईरान पर हालिया अमेरिकी बमबारी ने वैश्विक कूटनीति में भूचाल ला दिया है। इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कोरबा की वामपंथी पार्टियों ने इसे ईरान की संप्रभुता पर हमला और विश्व शांति के लिए एक गंभीर खतरा बताया है। उन्होंने भारत सरकार से अपनी विदेश नीति पर पुनर्विचार करने और इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है।

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन ने एक संयुक्त बयान जारी कर इस सैन्य कार्रवाई के गंभीर परिणामों पर चिंता व्यक्त की है।

*संप्रभुता पर हमला और वैश्विक तनाव को बढ़ावा*

माकपा के जिला सचिव कॉमरेड प्रशांत झा, भाकपा के जिला सचिव कॉमरेड पवन कुमार वर्मा, और भाकपा (माले) लिबरेशन के जिला सचिव कॉमरेड बी. एल. नेताम ने अपने संयुक्त वक्तव्य में कहा, “यह हमला न केवल ईरान की संप्रभुता का घोर उल्लंघन है, बल्कि यह संयुक्त राष्ट्र के घोषणापत्र के सिद्धांतों के भी खिलाफ है। इस कार्रवाई से पश्चिम एशिया में अस्थिरता और बढ़ेगी, वैश्विक तनाव चरम पर पहुँचेगा और इसके गंभीर आर्थिक दुष्परिणाम होंगे, जिसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।”
नेताओं ने इस बात पर जोर दिया कि यह हमला एक खतरनाक मिसाल कायम करता है, जहाँ शक्तिशाली देश एकतरफा निर्णय लेकर किसी भी संप्रभु राष्ट्र पर हमला कर सकते हैं।

*परमाणु हथियार के दावे पर उठाए सवाल*

अमेरिका और इज़राइल अपने इस हमले को यह कहकर सही ठहरा रहे हैं कि ईरान परमाणु हथियार बनाने की कगार पर था। हालांकि, वामपंथी दलों ने इस दावे को सिरे से खारिज किया है। उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय एटॉमिक एनर्जी एजेंसी (IAEA) के महानिदेशक, रफएल ग्रोस्सी के 19 जून के बयान का हवाला दिया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट कहा था, “हमारे पास ईरान द्वारा परमाणु हथियार की ओर बढ़ने के किसी व्यवस्थित प्रयास का कोई सबूत नहीं है।”

बयान में यह भी कहा गया कि अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने भी स्वीकार किया है कि उनके पास इस बात का कोई निर्णायक सबूत नहीं है कि ईरान परमाणु हथियार बना रहा था। इसके अलावा, ईरान परमाणु अप्रसार संधि (NPT) का एक हस्ताक्षरकर्ता देश है, जो उसे शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए परमाणु ऊर्जा का उपयोग करने की अनुमति देता है।

*हमले के पीछे असली मकसद क्या?*

वामपंथी नेताओं का आरोप है कि इस हमले का असली मकसद ईरान को तबाह करना, पश्चिम एशिया पर अपना वर्चस्व स्थापित करना और क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों के वैश्विक प्रवाह को नियंत्रित करना है। उन्होंने कहा, “यह हमला इराक पर हुए हमले की पुनरावृत्ति है, जो इसी तरह के झूठे और अप्रमाणित दावों के आधार पर किया गया था। यह विडंबना है कि अमेरिका, जो दुनिया का एकमात्र देश है जिसने परमाणु हथियारों का इस्तेमाल किया है, आज दूसरे देशों को परमाणु खतरे का डर दिखा रहा है।”

उनके अनुसार, यह सैन्य कार्रवाई सैन्य-औद्योगिक गठजोड़ के स्वार्थों को पूरा करने और अंतरराष्ट्रीय पूंजी को अपने संकट से उबारने के लिए की गई है।
भारत पर पड़ेगा गंभीर असर, सरकार से नीति बदलने की मांग
इस संघर्ष का सबसे बुरा असर भारत जैसे विकासशील देशों पर पड़ने की आशंका है। भारत अपनी तेल की जरूरतों के लिए पश्चिम एशिया पर बहुत अधिक निर्भर है। इसके अलावा, लाखों भारतीय प्रवासी इस क्षेत्र में काम करते हैं। युद्ध की स्थिति में तेल की कीमतें आसमान छू सकती हैं और प्रवासियों की सुरक्षा और रोजगार पर भी संकट आ सकता है।

वामपंथी दलों ने चिंता जताते हुए कहा, “युद्ध के आर्थिक दुष्परिणामों की सबसे बुरी मार पहले से ही महंगाई और बेरोजगारी से दबे मेहनतकश अवाम पर पड़ेगी।”
उन्होंने भारत सरकार से अपनी अमेरिका और इज़राइल समर्थक विदेश नीति को तत्काल त्यागने की अपील की है। उन्होंने मांग की कि भारत को इस युद्ध को रुकवाने के लिए वैश्विक मंचों पर सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए और शांति प्रयासों में शामिल होना चाहिए। अंत में, उन्होंने अपनी सभी इकाइयों और देश के शांतिप्रिय नागरिकों से इस साम्राज्यवादी हमले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने का आह्वान किया है।

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